रक्षाबंधन पर्व पर एस.एन. मेमोरियल स्कूल में भाई-बहन के प्रेम की अनूठी प्रस्तुति—संचालिका डॉ. स्मिता सिंह के नेतृत्व में बच्चों ने मनाया सांस्कृतिक पर्व

एस. एन. मेमोरियल स्कूल में रक्षाबंधन की उल्लासपूर्ण छटा—डॉ. स्मिता सिंह के नेतृत्व में बच्चों ने प्रस्तुत की भाई-बहन के प्रेम की अनोखी मिसाल

RAKSHA BANDHAN 2025


गांगी, आरा (बिहार), 8 अगस्त 2025
रक्षाबंधन, वह पर्व जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जिसमें न केवल भाई-बहन का अटूट प्रेम झलकता है, बल्कि सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक गौरव और भावनात्मक एकता भी प्रकट होती है। इस पावन पर्व को एस. एन. मेमोरियल स्कूल, गौसगंज, गांगी में स्कूल की संचालिका डॉ. स्मिता सिंह के नेतृत्व में अत्यंत उत्साह, श्रद्धा और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाया गया।

इस अवसर पर विद्यालय में एक विशेष आयोजन किया गया, जिसमें कक्षा प्ले ग्रुप से लेकर कक्षा दसवीं तक के छात्र-छात्राओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत विद्यार्थियों द्वारा डॉ. स्मिता सिंह को विशेष आमंत्रण पत्र देकर समारोह में आमंत्रित करने से हुई। बच्चों की इस आत्मीयता और स्नेह से अभिभूत होकर डॉ. सिंह ने न केवल कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई, बल्कि स्वयं बच्चों के मध्य बैठकर उनकी रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।

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भाई-बहन के रिश्ते की आत्मिक प्रस्तुति

विद्यालय प्रांगण में जब छोटे-छोटे बच्चों ने एक-दूसरे की कलाई पर राखी बाँधी, तो वह दृश्य इतना भावनात्मक और पावन था कि उपस्थित शिक्षकगण, अभिभावकगण एवं अतिथिगण सभी भाव-विभोर हो गए। इन नन्हे-मुन्ने बच्चों ने यह सिद्ध कर दिया कि भाई-बहन का प्रेम केवल खून का रिश्ता नहीं होता, बल्कि यह विश्वास, सुरक्षा और निस्वार्थ प्रेम का ऐसा बंधन है, जो आत्मा को जोड़ता है।

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रक्षा सूत्र बाँधते समय बच्चे एक-दूसरे के मंगल की कामना कर रहे थे। यह दृश्य इस बात का प्रतीक था कि भारतीय संस्कृति में भाई-बहन का रिश्ता केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भावनात्मक मूल्यों और नैतिकताओं की पाठशाला है।

डॉ. स्मिता सिंह ने कहा —

आज बच्चों ने हमें यह सिखाया है कि प्रेम और स्नेह की कोई उम्र नहीं होती। जब एक छोटी बहन अपने सहपाठी भाई को राखी बाँधती है, तो वहाँ परंपरा नहीं, भावना प्रमुख होती है। ऐसे आयोजनों से बच्चों के मन में एक-दूसरे के प्रति सम्मान, सौहार्द और आत्मीयता का भाव उत्पन्न होता है।”

राखी एवं ग्रीटिंग कार्ड प्रतियोगिता में सजीव हुई भारतीय कला

इस पावन अवसर पर विद्यालय में 'राखी निर्माण प्रतियोगिता' एवं 'ग्रीटिंग कार्ड निर्माण प्रतियोगिता' का आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों ने अपनी कल्पनाशक्ति, सांस्कृतिक समझ और कलात्मक प्रतिभा का मनमोहक प्रदर्शन किया। हाथों से बनीं रंग-बिरंगी राखियों में जहां सादगी थी, वहीं उनमें बच्चों का संस्कार, समर्पण और भावना भी झलक रही थी। ग्रीटिंग कार्ड्स में लिखे गए संदेशों ने यह प्रमाणित कर दिया कि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों से अधिक आत्मा की ज़रूरत होती है।

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डॉ. स्मिता सिंह स्वयं इन प्रतियोगिताओं में उपस्थित रहीं और बच्चों की प्रस्तुतियों को निकटता से देखा। उन्होंने मेधावी प्रतिभागियों को पुरस्कार वितरित करते हुए कहा

इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य बच्चों को केवल कला में प्रवीण बनाना नहीं है, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ना है। जब कोई बच्चा अपनी कलाई पर बनी राखी किसी को बाँधता है, तो वह केवल रेशमी धागा नहीं बाँधता, बल्कि विश्वास, सुरक्षा और प्रेम का वचन देता है।”

विद्यालय की भारतीयता से ओतप्रोत शैक्षणिक दृष्टि

एस. एन. मेमोरियल स्कूल की शिक्षण पद्धति सदैव ही भारतीय परंपराओं, मूल्यों और रीति-रिवाजों को आधुनिक शिक्षा के साथ समन्वित करने की दिशा में अग्रसर रही है। डॉ. स्मिता सिंह का मानना है कि यदि बच्चों को बचपन से ही भारतीय संस्कृति से जोड़ा जाए, तो वे न केवल विद्वान, बल्कि एक अच्छे नागरिक भी बनेंगे।

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उनकी सोच यह है कि त्योहार केवल मौज-मस्ती का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण, सामाजिक भावना और नैतिक मूल्यों को विकसित करने का भी एक सशक्त मंच होते हैं।

सांस्कृतिक धरोहर को सहेजते भविष्य निर्माता

कार्यक्रम का समापन सामूहिक गीत, "बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है..." के साथ हुआ, जिसमें सभी छात्रों ने मिलकर सांस्कृतिक बंधन की मिठास को अनुभव किया। स्कूल प्रांगण में रक्षाबंधन की खुशबू, बच्चों की मुस्कान और डॉ. सिंह की सराहना से भरा वातावरण एक अनुपम दृश्य बना।

इस आयोजन ने यह सशक्त संदेश दिया कि विद्यालय केवल ज्ञान अर्जन का केंद्र नहीं, बल्कि संस्कृति, संस्कार और सद्भाव का मंदिर भी है।

रक्षाबंधन के इस उल्लासमय अवसर पर एस. एन. मेमोरियल स्कूल ने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह भारतीयता की गहराई, सामाजिक जिम्मेदारी और सांस्कृतिक गौरव को भी आत्मसात करने वाली होनी चाहिए।

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